अनगिनत सब्दों के जाल में पड़ती हूँ...
किसको कहाँ लिखूं ये पहेली में फंसती हूँ.
में खोजूं किसको सुनाने ये अनकही बातें सारी
में क्या कहूँ किस्से ? जब मुझसे ये मन कुछ न कहे.
ढूंढे हमेशा किनारा हर एक बहती हुई लम्हों की धारों में....
क्यूँ हमेह्सा हम ढूँढ़ते रहते हैं एक उन्देखी राह को...
जब वक़्त आने पर ज़िन्दगी दिखलाती हे, कुछ और ही तस्वीर उन राहोंकी !!!
मन में अन्च्छुयें तार अभी खोल दो
जीवन के अनगीने पलों को खुलके जी लो..
मुस्कुराते हुए सीखो इन जाती ठहेरती पलोंसे ...किनारों की सपने बुनना छोड़ दो.
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